गायत्री मंत्र का हिंदी अर्थ सहित व्याख्या
ओउम भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
ॐ – परब्रह्मा का अभिवाच्या शब्द
भूः – भूलोक
भुवः – अंतरिक्ष लोक
स्वः -स्वर्गलोक
त -परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितुः -ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम -पूजनीय
भर्गः – अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य – ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि – हम ध्यान करते है
धियो – बुद्धि प्रज्ञा
योः – जो
नः – हमारा
प्रचोदयात् – प्रकाशित करे ।
अर्थ:– हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए ।
वह प्रकाश क्या है ? अभी तुम्हे देहाध्यास है तथा ऐसी बुद्धि है, जिससे तुम यह समझते हो कि यह शरीर ही तुम्हारा अपना है आत्मा को कोई महत्व नहीं देते । अब तुम वेदों को माता गायत्री से प्रार्थना कर रहे हों कि वह तुम्हें शुद्ध, सत्य बुद्धि दे, जो तुम्हें अहं ब्रम्हास्मि का बोध कराने में समर्थ हो । अहम ब्रम्हास्मि का अर्थ है कि मैं ब्रह्मा हूं । गायत्री का यह अद्द्वैत-अभिवाचक अर्थ हैं । योग के मार्ग में अनुभवी लोग यह अर्थ लगा सकते हैं– मै प्रकाशों में वह श्रेष्ठ प्रकाश हुँ, जो बुद्धि को प्रकाशित करता है ।
गायत्री मन्त्र में नौ नाम है, जैसे (१) ओउम,(२) भूः, (३) भुव:, (४) स्व:, (५) तत्, (६) सवितु:, (७) वरेण्यं, (८) भर्ग: (१) देवस्य । इन नौ नामों द्धारा ईश्वर की प्रशंसा होती है । धीमहि ईश्वर की पूजा अथवा ध्यान की ओर संकेत करता है । धियो यों न: प्रचोदयात –यह प्रार्थना है । यहाँ पांच स्थानों पर विश्राम है । ओउम् पर प्रथम विश्राम, भूर्भव्: स्व: पर दूसरा विश्राम , तत्सवितु: पर तीसरा विश्राम, भर्गो देवस्य धीमहि पर चतुर्थ विश्राम, धीयो यो न: प्रचोदयात् पर पंचम विश्राम । जब तुम इस मंत्र का जप करते हो तो इनमें से प्रत्येक विश्राम पर थोड़ा रुकना चाहिए ।
गायत्री मन्त्र का देवता सविता है । अग्नि उसका मुख है। विश्वामित्र उसके ऋषि हैं और गायत्री उसका छन्द है । इस मंत्र का उच्चारण यग्ज्ञोपवीत संस्कार, प्राणायाम और जप आदि के समय किया जाता है । गायत्री क्या है ? वही जो संध्या कहलाती है । और संध्या क्या है, वही जो गायत्री है । इस प्रकार गायत्री और संध्या दोनों एक ही चीज है । जो गायत्री का ध्यान करता है, वास्तव में वह विष्णु भगवान, का ध्यान करता है । विष्णु भगवान संसार के देवता हैं ।
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मनुष्य गायत्री मंत्र का हर समय जप कर सकता है । यहाँ तक कि लेटते, बैठते, चलते इसके जप में किसी नियम का बंधन नहीं है, जिसके न पालन करने से कोई पाप हो । इस प्रकार हमें दिन में तीन वार , सुबह दोपहर तथा शाम को गायत्री मन्त्र द्वारा संध्या वंदन करना चाहिए । केवल एक गायत्री मन्त्र ही ऐसा हैं, जिसको सब हिन्दू जाप सकते हैं, चाहे वह किसी भी देवता का उपासक हो । वेदो में भगवान् का कहना है : एक मन्त्र सभी के लिए होना चाहिए-समानो मंत्र: । अत: गायत्री ही एक ऐसा मन्त्र हैं, जो सभी हिन्दू के लिए उपयुक्त है : उपनिषदों की पवित्र विद्द्या चारों वेदों का सार हैं, जब कि तीनों व्याह्रतिर्यों-सहित गायत्री मन्त्र उपनिषदों का सार है । जों मनुष्य इस रूप में गायत्री मन्त्र को जानता और समझता हैं, वह वास्तविक ब्राह्मण है इस ज्ञान के बिना वह शूद्र है, चाहे वह चारों वेदों का ज्ञाता ही क्यों न हो ।